Coldest School Of India: भारत का अनोखा स्कूल जहां रेगिस्तान की तपती गर्मी में भी मिलती है ठंडक

Coldest School Of India: जैसलमेर, राजस्थान। अक्सर इस जगह का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में ऊंट, रेत के टीले और चिल चिलाती धूप की तस्वीर आ आती है। गर्मियों में यहां का तापमान 50 डिग्री सेलसियस को भी पार कर जाता है, लेकिन आपको एक बात बता देना चाहते हें कि इसी शहर में एक ऐसा स्कूल है जो बिना एसी या कूलर के प्राकृतिक रूप से ठंडा रहता है। यह है “राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल” एक ऐसी इमारत जो पर्यावरण-अनुकूल डिज़ाइन और देसी तकनीक का बेमिसाल नमूना पेश करती है।

प्रकृति और विज्ञान का अनूठा मेल

इस स्कूल की सबसे बड़ी खासियत है इसकी “ठंडी” इमारत। जैसलमेर के स्थानीय पीले बलुआ पत्थर से बनी यह बिल्डिंग अपने आप में एक इंजीनियरिंग चमत्कार है। ये पत्थर न सिर्फ मजबूत हैं, बल्कि इनमें गर्मी सोखने की क्षमता कम होती है।

इसके अलावा, छत को दो परतों से डिज़ाइन किया गया है। नीचे की परत चूने के प्लास्टर से बनी है, जो गर्मी को रोकती है, जबकि ऊपर चीनी मिट्टी की टाइल्स लगी हैं, जो सूरज की किरणों को परावर्तित कर देती हैं। इस तरह, भीतर का तापमान बाहर से 10-15 डिग्री कम रहता है।

अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइन में भारतीय संस्कृति की छाप

इस स्कूल को अमेरिकी आर्किटेक्ट डायना केलॉग ने डिज़ाइन किया है, लेकिन उन्होंने भारतीय पारंपरिक तकनीकों को नज़रअंदाज़ नहीं किया। इमारत का गोलाकार आकार रेगिस्तानी इलाकों में पाए जाने वाले पुराने कुओं (बावली) से प्रेरित है।

यह डिज़ाइन न केवल हवा के प्रवाह को बेहतर बनाता है, बल्कि छाया भी प्रदान करता है। केलॉग कहती हैं, “यह प्रोजेक्ट प्रकृति और मानव निर्मित संरचनाओं के बीच सामंजस्य को दर्शाता है।”

शिक्षा के साथ पर्यावरण संरक्षण का पाठ

यह स्कूल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि सस्टेनेबल लिविंग का प्रतीक है। यहां पढ़ने वाली 400 से अधिक छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ पर्यावरण बचाने के गुर भी सिखाए जाते हैं। कक्षाओं में प्राकृतिक रोशनी और हवा आने के लिए खिड़कियों को खास तरीके से बनाया गया है, जिससे बिजली की बचत होती है।

साथ ही, दीवारों पर बच्चों के बनाए इको-फ्रेंडली चित्र पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।

क्यों है यह प्रोजेक्ट देश के लिए महत्वपूर्ण?

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में, यह स्कूल साबित करता है कि पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीक के संगम से टिकाऊ समाधान संभव हैं। जैसलमेर जैसे इलाकों में एसी पर निर्भरता बढ़ रही है, लेकिन यह इमारत दिखाती है कि प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल करके ऊर्जा की बचत की जा सकती है। स्थानीय लोग भी अब इस तकनीक को अपने घरों में अपना रहे हैं।

समाज के लिए एक प्रेरणा

राजकुमारी रत्नावती स्कूल सिर्फ लड़कियों की शिक्षा तक सीमित नहीं है। यह समाज को यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रहना कितना ज़रूरी है। आज जब दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही है, ऐसे प्रोजेक्ट्स हमें एक नई राह दिखाते हैं। यह स्कूल न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व की बात है।

निष्कर्ष:
जैसलमेर का यह स्कूल साबित करता है कि अगर हम प्रकृति का सम्मान करें और पुराने ज्ञान को नए विज्ञान के साथ जोड़ें, तो असंभव दिखने वाले सपने भी सच हो सकते हैं। यह न केवल शिक्षा का केंद्र बल्कि एक हरित क्रांति की शुरुआत है।

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Anup

अनुप सिंह एक अनुभवी कंटेंट लेखक हैं, जो सरकारी योजनाओं, जनकल्याणकारी स्कीमों और सोशल वेलफेयर से जुड़ी जानकारी सरल हिंदी भाषा में प्रस्तुत करते हैं। इनका उद्देश्य है कि भारत के हर नागरिक तक सही और सटीक जानकारी पहुंचे ताकि वे सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ उठा सकें।

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