Indian Railway: अंग्रेजों के ज़माने की 5 सबसे पुरानी ट्रेनें जो आज भी चल रही हैं

भारतीय रेलवे न केवल देश की “जीवनरेखा” है, बल्कि यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भी है। आज के दौर में वंदे भारत और बुलेट ट्रेन जैसी आधुनिक ट्रेनों की चर्चा हो रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ ऐसी ट्रेनें हैं जो 150 साल से भी पुरानी हैं।

और आज भी यात्रियों को उनकी मंज़िल तक पहुँचा रही हैं? ये ट्रेनें सिर्फ़ परिवहन का साधन नहीं, बल्कि देश के इतिहास की जीती-जागती मिसाल हैं। आइए, जानते हैं इन पुरानी ट्रेनों की दिलचस्प कहानिया के बारे में।

भारत की पहली इंटरसिटी ट्रेन

इस ट्रेन को भारत की सबसे पुरानी इंटरसिटी ट्रेन का दर्जा मिला हुआ है। 1863 में शुरू हुई यह ट्रेन मुंबई (तब बॉम्बे) और पुणे के बीच चलती थी। ब्रिटिश काल में इसका उपयोग मुख्य रूप से अंग्रेज़ अधिकारी और व्यापारी करते थे।

उस समय इस ट्रेन को “डक्कन क्वीन” के साथ जोड़कर देखा जाता था, जो 1930 में लॉन्च हुई। आज यह ट्रेन मुंबई-पुणे रूट पर चलती है और महाराष्ट्र के हज़ारों यात्रियों के लिए एक विश्वसनीय विकल्प बनी हुई है।

अंग्रेज़ों की “समर कैपिटल” की सवारी (Netaji Express)

1866 में शुरू हुई इस ट्रेन को पहले ईस्ट इंडिया रेलवे मेल के नाम से जाना जाता था। यह कोलकाता (तब कलकत्ता) से दिल्ली के बीच चलती थी, जहाँ से ब्रिटिश अधिकारी गर्मियों में शिमला (उनकी ग्रीष्मकालीन राजधानी) जाने के लिए कालका तक जाते थे।

1891 में इसका रूट कालका तक बढ़ा दिया गया, और 2009 में इसे नेताजी एक्सप्रेस नाम दिया गया। आज यह ट्रेन हावड़ा से नई दिल्ली के बीच चलती है और भारतीय रेलवे की विरासत को जीवित रखे हुए है।

ब्रिटिश इंडिया की “प्रतिष्ठित ट्रेन” (Golden Temple Mail)

1928 में शुरू हुई यह ट्रेन ब्रिटिश काल में बॉम्बे (वीटी) से पेशावर (अब पाकिस्तान) तक चलती थी। 1930 में ‘द टाइम्स ऑफ़ लंदन’ ने इसे “ब्रिटिश भारत की सबसे शानदार ट्रेन” बताया था। 1947 के बाद इसका रूट बदलकर मुंबई-दिल्ली कर दिया गया, और 1996 में इसे गोल्डन टेंपल मेल नाम दिया गया। आज यह मुंबई से अमृतसर तक चलती है और सिख तीर्थयात्रियों के लिए विशेष महत्व रखती है।

भारत की सबसे लंबी दूरी की ट्रेन (Grand Trunk Express)

1929 में लॉन्च हुई GT Express ट्रेन पेशावर से मैंगलोर (3,000 किमी से अधिक) तक चलती थी और इस सफ़र में 104 घंटे लगते थे। विभाजन के बाद इसका रूट बदलकर दिल्ली-चेन्नई कर दिया गया। इसे “भारत की ग्रैंड ओल्ड लेडी” कहा जाता है, क्योंकि यह उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाली पहली लंबी दूरी की ट्रेन थी। आज भी यह ट्रेन 40+ स्टॉप्स के साथ यात्रियों को सस्ती और आरामदायक यात्रा प्रदान करती है।

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मुंबई से पंजाब तक की “तेज़ रफ़्तार” ट्रेन

1912 में शुरू हुई पंजाब मेल को पहले पंजाब लिमिटेड कहा जाता था। यह ट्रेन ब्रिटिश अधिकारियों और अमीर व्यापारियों की पसंदीदा थी, जो मुंबई से पेशावर (अब पाकिस्तान) तक का सफ़र करते थे। विभाजन के बाद इसका रूट मुंबई से फ़िरोज़पुर (पंजाब) तक सीमित कर दिया गया। आज भी यह ट्रेन 1,900 किमी का सफ़र तय करती है और अपनी पुरानी शान को बरकरार रखे हुए है।

विरासत और आधुनिकता का संगम

ये पुरानी ट्रेनें न सिर्फ़ Indian railway की ऐतिहासिक धरोहर हैं, बल्कि यह साबित करती हैं कि प्रगति के साथ-साथ विरासत को संजोना भी ज़रूरी है। आज इन ट्रेनों के डिब्बे और इंजन आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस किए गए हैं, लेकिन इनके नाम और रूट्स नहीं बदले गए। जैसे गोल्डन टेंपल मेल में अब एलईडी लाइट्स और बायो-टॉयलेट हैं, वहीं नेताजी एक्सप्रेस में स्पीड बढ़ाई गई है।

क्यों महत्वपूर्ण हैं ये ट्रेनें?

  • इनसे जुड़े हैं स्वतंत्रता संग्राम के किस्से (जैसे नेताजी सुभाष चंद्र बोसे की यात्राएँ)।
  • ये ट्रेनें रेलवे इंजीनियरिंग के विकास की गवाह हैं (स्टीम से डीजल और इलेक्ट्रिक इंजन तक)।
  • इन्होंने भारत के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को आकार देने में मदद की।

अगली बार जब आप इनमें से किसी ट्रेन में सफ़र करें, तो इसके इतिहास को महसूस करें क्योंकि ये सिर्फ़ ट्रेन नहीं, भारत की जीती-जागती तस्वीर हैं!

Anup

अनुप सिंह एक अनुभवी कंटेंट लेखक हैं, जो सरकारी योजनाओं, जनकल्याणकारी स्कीमों और सोशल वेलफेयर से जुड़ी जानकारी सरल हिंदी भाषा में प्रस्तुत करते हैं। इनका उद्देश्य है कि भारत के हर नागरिक तक सही और सटीक जानकारी पहुंचे ताकि वे सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ उठा सकें।

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