ग्वालियर, मध्य प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों की कम वेतन और अस्थायी नौकरी को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। यह मुद्दा अब सिर्फ श्रमिकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि शहर की महापौर डॉ. शोभा सिकरवार और SC-ST संगठन जैसे सामाजिक समूहों ने भी इसे उठाकर प्रशासन के सामने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
आइए समझते हैं कि क्यों जरूरी है यह मामला और कैसे इससे जुड़े हुए हैं सैकड़ों कर्मचारियों के भविष्य के सपन
महापौर ने की एजेंसियों पर सवालिया निशान
इस मुद्दे को सबसे पहले ग्वालियर की महापौर डॉ. शोभा सिकरवार ने गंभीरता से उठाया। उन्होंने नगर निगम के आयुक्त को लिखे पत्र में शिकायत की थी कि आउटसोर्सिंग एजेंसियां श्रमिकों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम मानदेय से कम भुगतान कर रही हैं।
महापौर ने इन एजेंसियों की तत्काल जांच और श्रमिकों को उचित वेतन दिलाने की मांग की। यह कदम महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहली बार प्रशासन के उच्च स्तर पर इस समस्या को स्वीकार किया गया है। श्रमिकों का कहना है कि एजेंसियां उनके वेतन का एक हिस्सा काट लेती हैं, जिससे उनकी मेहनत का पूरा मेल नहीं मिल पाता।
SC-ST संगठन का दबाव, रखी ये मुख्य मांगें
महापौर डॉ. शोभा सिकरवार के इस मुद्दे को उठाने के बाद अधिकारी कर्मचारी संघ (SC-ST संगठन) अनुसूचित जाति-जनजाति भी सामने आएं है। संगठन के प्रतिनिधियों ने State Govt के प्रभारी मंत्री तुलसीराम सिलावट को ज्ञापन देकर तीन बड़ी मांगें रखीं।
पहली मांग है कि जो आउटसोर्स कर्मचारियों हैं उन्हें Permanent job दी जाए। संगठन का तर्क है कि ये कर्मचारी 5 से 10 साल नगर निगम में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन उन्हें न तो पेंशन मिलती है और न ही स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएं। दूसरी मांग शहर के 27-ए रेसकोर्स रोड स्थित कोचिंग सेंटर से जुड़ी है, जहां आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को नि:शुल्क पढ़ाया जाता है।
संगठन चाहता है कि यहां एक पुस्तकालय बनाया जाए, ताकि छात्रों को बेहतर अध्ययन सामग्री मिल सके। तीसरी मांग में SC-ST वर्ग के कर्मचारियों के लिए विशेष आरक्षण और सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान करने की बात कही गई है।
क्यों जरूरी है स्थायी नौकरी की मांग?
आउटसोर्सिंग व्यवस्था में कर्मचारियों को ठेके पर रखा जाता है, जिससे उनके पास नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं होती। वेतन देरी से मिलना, महंगाई भत्ते का अभाव और अचानक नौकरी जाने का डर उनकी रोजमर्रा की चुनौतियां हैं।
SC-ST संगठन के जिलाध्यक्ष विजय पिपरोलिया के मुताबिक, “ये कर्मचारी सफाई, डेटा एंट्री जैसे महत्वपूर्ण काम करते हैं, लेकिन उन्हें दोयम दर्जे का समझा जाता है। स्थायी नौकरी मिलने से न सिर्फ उनका भविष्य सुरक्षित होगा, बल्कि उनके बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पेट भरना भी आसान होगा।” यह मुद्दा अब सिर्फ वेतन तक सीमित नहीं, बल्कि मजदूर अधिकारों और समानता का प्रतीक बन गया है।
सरकार और प्रशासन पर टिकी हैं निगाहें
अब सवाल यह है कि सरकार और नगर निगम इस मामले में क्या कदम उठाएंगे। क्या आउटसोर्सिंग एजेंसियों की जांच होगी? क्या श्रमिकों को न्यूनतम वेतन मिल पाएगा?
संगठन के नेता राजेंद्र पक्षवार और मनीराम काटोरिया जैसे लोगों का कहना है कि यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक कर्मचारियों को उनका हक नहीं मिल जाता।
विशेषज्ञों के सुझाव क्या हो सकता है समाधान?
श्रम कानूनों के जानकारों का मानना है कि इस समस्या का स्थायी हल आउटसोर्सिंग नीति में बदलाव है। पहला, सरकार को चाहिए कि श्रमिकों का वेतन सीधे उनके बैंक खातों में भेजा जाए, ताकि एजेंसियां बीच में पैसे न काट सकें।
दूसरा, जो कर्मचारी 3 साल से अधिक समय से काम कर रहे हैं, उन्हें स्वचालित रूप से स्थायी कर दिया जाए। तीसरा, SC-ST समुदाय के लिए विशेष कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाएं, जिससे उन्हें शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मिल सकें। इन कदमों से न सिर्फ श्रमिकों का विश्वास बढ़ेगा, बल्कि काम की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।
एक लड़ाई जो सभी के लिए सबक है
ग्वालियर का यह मामला देशभर के उन लाखों आउटसोर्स कर्मचारियों की आवाज बन गया है, जो न्यूनतम वेतन और नौकरी की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अगर सरकार ने समय रहते इन मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह आंदोलन और व्यापक हो सकता है।